लालू भाई अभी भी न्यूज़ में हैं । रहेंगे भी । उनके बिना ख़बर पूरी ही नहीं हो सकती है । अक्सर युनिवर्सल नहीं तो 'पाकिस्तान ' तक , उनका कद ही ऐसा है । कुछ चीजें बिना उपयोग के भी 'शो पीस ' होती हैं । कार्टून कहें तो शायद ज्यादा सही हो । लालू जी भी वह ओहदा रखते हैं । पहले सिर्फ़ हास्य रस का भाव पैदा करते थे । अब उसके साथ करुण रस भी शुमार हो गया है ।
लेकिन जो बात कर रहा था वह ' बेजरूरत ' भी , ' बेगैरत ' होते हुए भी , ' खास ' बने रहने की कला है । लालू इस कला में बेजोड़ हैं । ताश के पैक की तरह । जैसे जोकर भले ही , हमेशा घेलुआ , ( यानी फोकट ) में ही सही , मिल जाता है । लालू भी उपलब्ध रहे भारतीय राजनीती में । अक्सर बेकार के ही नहीं अवांछित भी । लेकिन अगर कोई पत्ता खो जाए तो जैसे जोकर को कुछ भी बना दिया जा सकता है वैसे ही लालू भी कुछ भी बन सकने या बना दिए जाने की कूवत रखते हैं । ताश खेलने वाले इस मजबूरी को जानते हैं । मजबूर हैं ।
जोक्कर के बिना इस मजबूरी का समाधान नहीं । लेकिन राजनीती के इस खेल में लालू अब तक 'लल्लू ' नहीं रहे । दूसरों को ही बनाते रहे । लोग भी 'लल्लू ' बन जाने के बाद ही इस जोकर की राजनीती समझ पाए । लेकिन तब तक वो बन्दे चाहे जितने बड़े तुरुप के इक्के रहे हों , लालू उन्हें ' उल्लू ' बना , ताश के पैक से ही उन्हें खारिज कर , ख़ुद ही तुरुप की चाल का ' इक्का ' चलने में माहिर होते रहे ।
लगता है राजनीती के इन बन्दों ने सर्कस नहीं देखा था । देखा होता तो ' लल्लू ' न बन पाते । जो सबसे शातिर करतब बाज़ होता है पैंतरों का , सर्कस में , वही 'जोकर ' बनाया जाता है । लोग भी खुश होते हैं । मूर्ख को देख आनंदित होना अक्सर सभी की फितरत होती है । ख़ुद को बुद्धिमान साबित करना आसान हो जाता है । यह इंसानी कमजोरी है । किया भी क्या जा सकता है ? हम सभी इस मूर्खता का शिकार होते रहते हैं कभी न कभी । खतरों को न भाँप पाना भी साथ ही लग जाता है , जो ऐसे ' बुद्धिमान ' लोगों के ' लल्लू 'बन जाने का मार्ग खोल देता है । बन जाते हैं ' लल्लू ' ! और फ़िर , "कहा भी न जाए और रहा भी न जाए " वाला सिलसिला शुरू हो जाता है । लालू द्वारा बनाये गए ऐसे लल्लुओं की लम्बी लिस्ट है ।
राजनीती के खेल में शुरू से ही लालू ने ऐसे 'पत्तों' को निशाने पे रखा । उसे गायब कर ,रिप्लेस कर , यह जोकर ख़ुद ही "गड्डी " में शुमार होता रहा । बड़ी लम्बी दूरी तय कर डाली । अरमान तो हुकुम का इक्का बनने का था ,वही बच भी गया था । अब जब अडवानी जी नहीं बन पाए तो इस जोकर की क्या बिसात ?
लेकिन अब तक इस जोकर का पावर सब जान गए हैं । लेकिन एक जोकर की तिकड़म और भाग्य की भी लिमिट होती है । बहुत घिस जाने के बाद ताश की ही गड्डी बदल दी जाया करती है । अब किस्मत को क्या कहें ? वही स्थिति हो गयी है । अब नयी गड्डी में जोकर भी और ही होंगे । हैं भी . करोड़ों नहीं तो लाखों में तो होंगे ही . लोग उन्हें चमचा , बे पेंदी का लोटा , सत्ता के दलाल ,वगैरह वगैरह बोलता जनाता ही रहता है . लेकिन यह जोकर तो अब लगातार खेल में बने रहने के कारण काफी घिस गया है । पहचान में बहुत आसान से आसान हो गया है । ( शध्रेय श्री लाल शुक्ल की राग दरबारी से सौद्देश और साभार ) । अब इस ' जोकर ' को ले कर ताश खेलना जोखम भरा हो गया है । कोई हाथ भी नहीं लगा रहा , और राजनीती की गड्डी की कोई 'चिडी की दुक्की ' या ' हुकुम का गुलाम ' भी , इस पुराने जोकर के झांसे में आने की मूर्खता नहीं कर पायेगी/ कर पायेगा । कहा भी गया है , ' मनुष बली नहीं होत है , समय होत बलवान '।
थोड़ा पीछे तक जाते हैं । छात्र राजनीती , लालू ने 'धाकड़' छात्र नेता शिवानन्द तिवारी का 'बस्ता' उठाने से शुरूवात की । बाद में कभी उन्हीं का बस्ता सरकारी बंगले से दिन दहाड़े सड़क पर भी फिंकवाया । पहले ही बता चुका हूँ । बाबा शिवानन्द जैसे लल्लुओं की लम्बी लिस्ट है । ताश के बावन पत्तों में लालू सिर्फ़ हुकुम के इक्के को नहीं रिप्लेस कर पाए । पी एम् ना हो पाए । आख़िर किस्मत के मामले में सभी तो ' देवगौड़ा ' नहीं हो सकते ना !
या सद इक्क्षावोन का पुरस्कार नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ! और सभी की किस्मत हर वक़्त तो सिकंदर नहीं हो सकती । आख़िर भगवान को लोग भगवान ऐसे थोड़े ही ' भगवान ' मान बैठते है !
चलिए थोड़ा किस्मत की भी बात कर लेते हैं । लालू की किस्मत शुरू हुयी ' भैंस टॉप 'से ।यानी भैंस पर ' चढ़ते ' थे । यानी सवारी गांठते थे । उन्होंने ख़ुद ही स्वीकार किया है की ' भैंस ' को पता भी नहीं लगता था । आख़िर लाख कोई झुन्थलाये भैंस के लिए भी ,
' साइज़ मैटर्स ' !
तब उनका 'साईज' इतना बड़ा नहीं था । भैंस ने भी परवाह नहीं की । लालू सवार रहे । तब भैंस को भी क्या पता था की जिसे 'लल्लू' समझ रही थी कि 'क्या फरक पैंदा ' है ?,वही किसी दिन उसका ' चारा ' ही नहीं ' खा ' जाएगा , बिना चारा खिलाये दुहता भी रहेगा । विरोधी सिर्फ़ चिल्लाते ही रह गए ." चारा चोर चारा चोर , लालू राबडी गद्दी छोड़ । लेकिन तब तक लालू ताश की ' गड्डी ' के पावर के हुकुम के गुलाम हो चुके थे . अपनी टट्टी को भैंस का असली गोबर बता चारा खाने का सारा आरोप उस भैंस पर थोप दिया । यह माज़रा वह समझ ही नहीं पाई कुछ साल तक तो । आख़िर ठहरी भैंस ! दूध भी चारे के ' आश्वासन ' पर जो जब बन पड़ा, देती ही रही । लेकिन लाख भैंस हो । भले कहा जाता हो कि "अकल बड़ी या भैंस'
" ? भले ही देर से समझती हो ; एक बार समझ जाने पर जो पदरौन्की ( पन्दरौंकने का मतलब जो लोग न जानते हों किसी पूरबिया से पूँछ लें । ) , कि लालू चारों ( चारा नहीं ) खाने चित्त , सीधे ज़मीन पर नज़र आए ।
नोट : पाठकों मैं आप को अपने दुश्मनों से सावधान करना चाहता हूँ । मैं तो एक बात की बात कह रहा हूँ लेकिन कुछ लोग उस भैंस का नाम ' बिहार ' और अठारह साल तक बेवकूफ बने रहने का गम और गुस्सा , बता मुझे ही लपेटे में ले सकते हैं । इसलिए भैंस को सिर्फ़ भैंस ही समझें ' बिहार ' नहीं । भैंस को भैंस ही रहने दो कोई नाम न दो . बिहार इस वक़्त वैसे ही बड़े गुस्से में है । वैसे 'बिहार' लालू का क्या उखाड़ पाया अब तक ,जो अब उखाड़ लेगा , लेकिन मेरे जैसों की तो ऐसी की तैसी हो जायेगी न यार !
चलिए विषयांतर ठीक नहीं । वही किस्मत वाली बात पे फ़िर आता हूँ । लालू भैस से तो गिरे लेकिन किस्मत के सिकंदर । चढ़ने के लिए इस बार पूरी रेल ही खड़ी थी । रेल पर चढ़ बैठे ! अब थोड़ा रेल के बारे में भी बता दूँ । इतनी बीमार थी की डीजल तो पीती थी बोझ नहीं उठाती थी । दौड़ने की उम्मीद उससे कोई नहीं रखता था , लेकिन सिर्फ़ सरक रही थी । घाटा इतना बढ़ रहा था की लोग बेंच देने तक की बात करने लगे । उसी समय अटल जी प्रधान मंत्री हो गए . चतुर खिलाडी ! आख़िर वो भी अटल ' बिहारी ' !! बोले की "यह बिहार का मामला है । अब इस लिए इसे कोई बिहारी ही सुलझाए " ।
बताते चलूँ की जहाँ तक याद आता है बाबू जगजीवन राम से लेकर अब तक , रेल चलाने का जिम्मा करीब करीब , बिहारियों का ही रहा है । जार्ज फर्नान्डीज़ तक , जब तक बिहारी नहीं बन गए , तब तक उन्हें भी रेल नहीं चढ़ने को मिली । भले ज़िन्दगी भर रेल हड़ताल कराते फिरे । फोकट की सवारी से लेकर डायरेक्ट इनडायरेक्ट रेल लूटने का काम भी बिहारी ही सबसे बढ़िया करते रहे । तो नीतिश कुमार पकड़ में आ गए ।
नीतिश ठहरे मैकनिकल इंजीनीयर । बिहार से पास किए तो क्या ? बिना नक़ल मारे डिग्री लिए इन्गीनीयारिंग वाले , चैलेंज को सीरीयसली ले बैठे । अब जो लोग बिहारिओं को जानते हैं वो ये भी जानते हैं की बिहारियों से ज्यादा बड़ा चैलेन्ज कोई नहीं ले सकता । कल्यानजी की हिदायत के बावजूद बिहारी ' शोट्गन ' हो गया ! और इंदिरा गांधी के ' जलाल ' के खिलाफ , जरूरत पडी तो क्रांति से कम कुछ नहीं ! नेहरू-गांधी परिवार जेपी को कभी भूल पायेगा ? भले देश भूल जाए !
तो नीतिश भी सब कल पुर्जा प्लानिंग कर , चार साल में घाटे से निकाल कर , रेल को पटरी पर ला फायदे और स्पीड की बाट ही जोहते रह गए । लेकिन तब तक तो लालू सवार हो गए रेल पर , रेल को हरी झंडी दिखाने । अपनी चारा खा सभी की हुयी ' लीद ' को पूरे बिहार में छितरा , बिहार को नीतिश के मत्थे छोड़ , रेलवई का सुपर सलून हो गए । लैपटॉप थाम , रेल का सारा क्रेडिट ले उडे और दुनिया भर को ' मैनेजमेंट ' सिखाने लग गए ' लैप टॉप ' उठा . अब बात भी सच थी । मैनेजमेंट क्या है ? ' जुगाड़ ' का अंगरेजी नाम ही न !
जो क्लेम कर ले वही सिकंदर !!
नोट :मेरा एक भतीजा आई आई एम् का विद्यार्थी था जब लालू वहां 'मैनेजमेंट गुरु' बन भाषण देने पहुंचे थे । कौतुहलवश मैंने पूछा कि " बेटा ये बता की लालू से क्या सीखा ? जबाब मिला कि , " लालू स्वयं हमारे लिए एक ' केस स्टडी ' थे "। वो ये की , ऐसा आदमी यहाँ तक पहुंचा कैसे बिना किसी सब्सटेंस के ? अब सब अलग अलग तो ' स्टडी ' कर नहीं सकते थे , तो उन्हीं को बुला लिया । मैंने पूछा सो तो ठीक ! लेकिन पल्ले क्या पड़ा बेटा तुम्हारे ? जबाब जो मिला वो भी गज़ब का ! बोला की " हमारा निष्कर्ष ये निकला की बाजी अगर सही हो तो ' जोकर ' को भी क्रेडिट मिल सकता है "। मैनेजमेंट चाहे जिसका हो !
खैर ! बात फ़िर वहीं पहुँच गयी है । अब लालू के हाथ न रेल लगते दिख रही है न बिहार । फिलहाल किस्मत में अभी भी भैंस है । और लालू क्लेम भी यही करते हैं की सब कमाई 'डेयरी ' के धंधे से आयी है । सही मान लेता हूँ । लेकिन लालू यार, भारत के उन करोड़ों लोगों को , जो सिर्फ़ गोबर उठा रहे हैं, लगे हाथ वो 'मनैज्मेंट' भी तो 'समझाओ' की 'भइंस' पाल कर कैसे सैकड़ों करोड़ कमाए जा सकते हैं । यह देश तुम्हारा आजीवन रिनी रहेगा , और ' गोपालन ' में तुमको ' किशुन ' भगवान से कम नहीं मानेगा , जो तुम ख़ुद को 'क्लेम ' करते हो !
तो फेंको लैपटॉप , दो किसी बिहारी होनहार को , ( सौ में पचास होते हैं , मैं कह रहा हूँ ! ) , और फ़िर चढ़ जाओ भैंस पर ..............
फ्रॉम भैंस टॉप टु लैपटॉप एंड बैक.....स्टडी ऑफ़ अ 'मैनेजमेंट गुरु ' ।
जय हिंद !
आप सब का.......
छौंक सिंह 'तड़का' ।
पुनश्च :
इस बार का तड़का जगत 'ताऊ', जो विनम्रता पूर्वक स्वयं को सिर्फ़ रामपुरिया कहते हैं तथा , धुरंधर 'नुक्कड़ बाज़ ' अविनाश गुरु के नाम !
रविवार, 17 मई 2009
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