लालू भाई अभी भी न्यूज़ में हैं । रहेंगे भी । उनके बिना ख़बर पूरी ही नहीं हो सकती है । अक्सर युनिवर्सल नहीं तो 'पाकिस्तान ' तक , उनका कद ही ऐसा है । कुछ चीजें बिना उपयोग के भी 'शो पीस ' होती हैं । कार्टून कहें तो शायद ज्यादा सही हो । लालू जी भी वह ओहदा रखते हैं । पहले सिर्फ़ हास्य रस का भाव पैदा करते थे । अब उसके साथ करुण रस भी शुमार हो गया है ।
लेकिन जो बात कर रहा था वह ' बेजरूरत ' भी , ' बेगैरत ' होते हुए भी , ' खास ' बने रहने की कला है । लालू इस कला में बेजोड़ हैं । ताश के पैक की तरह । जैसे जोकर भले ही , हमेशा घेलुआ , ( यानी फोकट ) में ही सही , मिल जाता है । लालू भी उपलब्ध रहे भारतीय राजनीती में । अक्सर बेकार के ही नहीं अवांछित भी । लेकिन अगर कोई पत्ता खो जाए तो जैसे जोकर को कुछ भी बना दिया जा सकता है वैसे ही लालू भी कुछ भी बन सकने या बना दिए जाने की कूवत रखते हैं । ताश खेलने वाले इस मजबूरी को जानते हैं । मजबूर हैं ।
जोक्कर के बिना इस मजबूरी का समाधान नहीं । लेकिन राजनीती के इस खेल में लालू अब तक 'लल्लू ' नहीं रहे । दूसरों को ही बनाते रहे । लोग भी 'लल्लू ' बन जाने के बाद ही इस जोकर की राजनीती समझ पाए । लेकिन तब तक वो बन्दे चाहे जितने बड़े तुरुप के इक्के रहे हों , लालू उन्हें ' उल्लू ' बना , ताश के पैक से ही उन्हें खारिज कर , ख़ुद ही तुरुप की चाल का ' इक्का ' चलने में माहिर होते रहे ।
लगता है राजनीती के इन बन्दों ने सर्कस नहीं देखा था । देखा होता तो ' लल्लू ' न बन पाते । जो सबसे शातिर करतब बाज़ होता है पैंतरों का , सर्कस में , वही 'जोकर ' बनाया जाता है । लोग भी खुश होते हैं । मूर्ख को देख आनंदित होना अक्सर सभी की फितरत होती है । ख़ुद को बुद्धिमान साबित करना आसान हो जाता है । यह इंसानी कमजोरी है । किया भी क्या जा सकता है ? हम सभी इस मूर्खता का शिकार होते रहते हैं कभी न कभी । खतरों को न भाँप पाना भी साथ ही लग जाता है , जो ऐसे ' बुद्धिमान ' लोगों के ' लल्लू 'बन जाने का मार्ग खोल देता है । बन जाते हैं ' लल्लू ' ! और फ़िर , "कहा भी न जाए और रहा भी न जाए " वाला सिलसिला शुरू हो जाता है । लालू द्वारा बनाये गए ऐसे लल्लुओं की लम्बी लिस्ट है ।
राजनीती के खेल में शुरू से ही लालू ने ऐसे 'पत्तों' को निशाने पे रखा । उसे गायब कर ,रिप्लेस कर , यह जोकर ख़ुद ही "गड्डी " में शुमार होता रहा । बड़ी लम्बी दूरी तय कर डाली । अरमान तो हुकुम का इक्का बनने का था ,वही बच भी गया था । अब जब अडवानी जी नहीं बन पाए तो इस जोकर की क्या बिसात ?
लेकिन अब तक इस जोकर का पावर सब जान गए हैं । लेकिन एक जोकर की तिकड़म और भाग्य की भी लिमिट होती है । बहुत घिस जाने के बाद ताश की ही गड्डी बदल दी जाया करती है । अब किस्मत को क्या कहें ? वही स्थिति हो गयी है । अब नयी गड्डी में जोकर भी और ही होंगे । हैं भी . करोड़ों नहीं तो लाखों में तो होंगे ही . लोग उन्हें चमचा , बे पेंदी का लोटा , सत्ता के दलाल ,वगैरह वगैरह बोलता जनाता ही रहता है . लेकिन यह जोकर तो अब लगातार खेल में बने रहने के कारण काफी घिस गया है । पहचान में बहुत आसान से आसान हो गया है । ( शध्रेय श्री लाल शुक्ल की राग दरबारी से सौद्देश और साभार ) । अब इस ' जोकर ' को ले कर ताश खेलना जोखम भरा हो गया है । कोई हाथ भी नहीं लगा रहा , और राजनीती की गड्डी की कोई 'चिडी की दुक्की ' या ' हुकुम का गुलाम ' भी , इस पुराने जोकर के झांसे में आने की मूर्खता नहीं कर पायेगी/ कर पायेगा । कहा भी गया है , ' मनुष बली नहीं होत है , समय होत बलवान '।
थोड़ा पीछे तक जाते हैं । छात्र राजनीती , लालू ने 'धाकड़' छात्र नेता शिवानन्द तिवारी का 'बस्ता' उठाने से शुरूवात की । बाद में कभी उन्हीं का बस्ता सरकारी बंगले से दिन दहाड़े सड़क पर भी फिंकवाया । पहले ही बता चुका हूँ । बाबा शिवानन्द जैसे लल्लुओं की लम्बी लिस्ट है । ताश के बावन पत्तों में लालू सिर्फ़ हुकुम के इक्के को नहीं रिप्लेस कर पाए । पी एम् ना हो पाए । आख़िर किस्मत के मामले में सभी तो ' देवगौड़ा ' नहीं हो सकते ना !
या सद इक्क्षावोन का पुरस्कार नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ! और सभी की किस्मत हर वक़्त तो सिकंदर नहीं हो सकती । आख़िर भगवान को लोग भगवान ऐसे थोड़े ही ' भगवान ' मान बैठते है !
चलिए थोड़ा किस्मत की भी बात कर लेते हैं । लालू की किस्मत शुरू हुयी ' भैंस टॉप 'से ।यानी भैंस पर ' चढ़ते ' थे । यानी सवारी गांठते थे । उन्होंने ख़ुद ही स्वीकार किया है की ' भैंस ' को पता भी नहीं लगता था । आख़िर लाख कोई झुन्थलाये भैंस के लिए भी ,
' साइज़ मैटर्स ' !
तब उनका 'साईज' इतना बड़ा नहीं था । भैंस ने भी परवाह नहीं की । लालू सवार रहे । तब भैंस को भी क्या पता था की जिसे 'लल्लू' समझ रही थी कि 'क्या फरक पैंदा ' है ?,वही किसी दिन उसका ' चारा ' ही नहीं ' खा ' जाएगा , बिना चारा खिलाये दुहता भी रहेगा । विरोधी सिर्फ़ चिल्लाते ही रह गए ." चारा चोर चारा चोर , लालू राबडी गद्दी छोड़ । लेकिन तब तक लालू ताश की ' गड्डी ' के पावर के हुकुम के गुलाम हो चुके थे . अपनी टट्टी को भैंस का असली गोबर बता चारा खाने का सारा आरोप उस भैंस पर थोप दिया । यह माज़रा वह समझ ही नहीं पाई कुछ साल तक तो । आख़िर ठहरी भैंस ! दूध भी चारे के ' आश्वासन ' पर जो जब बन पड़ा, देती ही रही । लेकिन लाख भैंस हो । भले कहा जाता हो कि "अकल बड़ी या भैंस'
" ? भले ही देर से समझती हो ; एक बार समझ जाने पर जो पदरौन्की ( पन्दरौंकने का मतलब जो लोग न जानते हों किसी पूरबिया से पूँछ लें । ) , कि लालू चारों ( चारा नहीं ) खाने चित्त , सीधे ज़मीन पर नज़र आए ।
नोट : पाठकों मैं आप को अपने दुश्मनों से सावधान करना चाहता हूँ । मैं तो एक बात की बात कह रहा हूँ लेकिन कुछ लोग उस भैंस का नाम ' बिहार ' और अठारह साल तक बेवकूफ बने रहने का गम और गुस्सा , बता मुझे ही लपेटे में ले सकते हैं । इसलिए भैंस को सिर्फ़ भैंस ही समझें ' बिहार ' नहीं । भैंस को भैंस ही रहने दो कोई नाम न दो . बिहार इस वक़्त वैसे ही बड़े गुस्से में है । वैसे 'बिहार' लालू का क्या उखाड़ पाया अब तक ,जो अब उखाड़ लेगा , लेकिन मेरे जैसों की तो ऐसी की तैसी हो जायेगी न यार !
चलिए विषयांतर ठीक नहीं । वही किस्मत वाली बात पे फ़िर आता हूँ । लालू भैस से तो गिरे लेकिन किस्मत के सिकंदर । चढ़ने के लिए इस बार पूरी रेल ही खड़ी थी । रेल पर चढ़ बैठे ! अब थोड़ा रेल के बारे में भी बता दूँ । इतनी बीमार थी की डीजल तो पीती थी बोझ नहीं उठाती थी । दौड़ने की उम्मीद उससे कोई नहीं रखता था , लेकिन सिर्फ़ सरक रही थी । घाटा इतना बढ़ रहा था की लोग बेंच देने तक की बात करने लगे । उसी समय अटल जी प्रधान मंत्री हो गए . चतुर खिलाडी ! आख़िर वो भी अटल ' बिहारी ' !! बोले की "यह बिहार का मामला है । अब इस लिए इसे कोई बिहारी ही सुलझाए " ।
बताते चलूँ की जहाँ तक याद आता है बाबू जगजीवन राम से लेकर अब तक , रेल चलाने का जिम्मा करीब करीब , बिहारियों का ही रहा है । जार्ज फर्नान्डीज़ तक , जब तक बिहारी नहीं बन गए , तब तक उन्हें भी रेल नहीं चढ़ने को मिली । भले ज़िन्दगी भर रेल हड़ताल कराते फिरे । फोकट की सवारी से लेकर डायरेक्ट इनडायरेक्ट रेल लूटने का काम भी बिहारी ही सबसे बढ़िया करते रहे । तो नीतिश कुमार पकड़ में आ गए ।
नीतिश ठहरे मैकनिकल इंजीनीयर । बिहार से पास किए तो क्या ? बिना नक़ल मारे डिग्री लिए इन्गीनीयारिंग वाले , चैलेंज को सीरीयसली ले बैठे । अब जो लोग बिहारिओं को जानते हैं वो ये भी जानते हैं की बिहारियों से ज्यादा बड़ा चैलेन्ज कोई नहीं ले सकता । कल्यानजी की हिदायत के बावजूद बिहारी ' शोट्गन ' हो गया ! और इंदिरा गांधी के ' जलाल ' के खिलाफ , जरूरत पडी तो क्रांति से कम कुछ नहीं ! नेहरू-गांधी परिवार जेपी को कभी भूल पायेगा ? भले देश भूल जाए !
तो नीतिश भी सब कल पुर्जा प्लानिंग कर , चार साल में घाटे से निकाल कर , रेल को पटरी पर ला फायदे और स्पीड की बाट ही जोहते रह गए । लेकिन तब तक तो लालू सवार हो गए रेल पर , रेल को हरी झंडी दिखाने । अपनी चारा खा सभी की हुयी ' लीद ' को पूरे बिहार में छितरा , बिहार को नीतिश के मत्थे छोड़ , रेलवई का सुपर सलून हो गए । लैपटॉप थाम , रेल का सारा क्रेडिट ले उडे और दुनिया भर को ' मैनेजमेंट ' सिखाने लग गए ' लैप टॉप ' उठा . अब बात भी सच थी । मैनेजमेंट क्या है ? ' जुगाड़ ' का अंगरेजी नाम ही न !
जो क्लेम कर ले वही सिकंदर !!
नोट :मेरा एक भतीजा आई आई एम् का विद्यार्थी था जब लालू वहां 'मैनेजमेंट गुरु' बन भाषण देने पहुंचे थे । कौतुहलवश मैंने पूछा कि " बेटा ये बता की लालू से क्या सीखा ? जबाब मिला कि , " लालू स्वयं हमारे लिए एक ' केस स्टडी ' थे "। वो ये की , ऐसा आदमी यहाँ तक पहुंचा कैसे बिना किसी सब्सटेंस के ? अब सब अलग अलग तो ' स्टडी ' कर नहीं सकते थे , तो उन्हीं को बुला लिया । मैंने पूछा सो तो ठीक ! लेकिन पल्ले क्या पड़ा बेटा तुम्हारे ? जबाब जो मिला वो भी गज़ब का ! बोला की " हमारा निष्कर्ष ये निकला की बाजी अगर सही हो तो ' जोकर ' को भी क्रेडिट मिल सकता है "। मैनेजमेंट चाहे जिसका हो !
खैर ! बात फ़िर वहीं पहुँच गयी है । अब लालू के हाथ न रेल लगते दिख रही है न बिहार । फिलहाल किस्मत में अभी भी भैंस है । और लालू क्लेम भी यही करते हैं की सब कमाई 'डेयरी ' के धंधे से आयी है । सही मान लेता हूँ । लेकिन लालू यार, भारत के उन करोड़ों लोगों को , जो सिर्फ़ गोबर उठा रहे हैं, लगे हाथ वो 'मनैज्मेंट' भी तो 'समझाओ' की 'भइंस' पाल कर कैसे सैकड़ों करोड़ कमाए जा सकते हैं । यह देश तुम्हारा आजीवन रिनी रहेगा , और ' गोपालन ' में तुमको ' किशुन ' भगवान से कम नहीं मानेगा , जो तुम ख़ुद को 'क्लेम ' करते हो !
तो फेंको लैपटॉप , दो किसी बिहारी होनहार को , ( सौ में पचास होते हैं , मैं कह रहा हूँ ! ) , और फ़िर चढ़ जाओ भैंस पर ..............
फ्रॉम भैंस टॉप टु लैपटॉप एंड बैक.....स्टडी ऑफ़ अ 'मैनेजमेंट गुरु ' ।
जय हिंद !
आप सब का.......
छौंक सिंह 'तड़का' ।
पुनश्च :
इस बार का तड़का जगत 'ताऊ', जो विनम्रता पूर्वक स्वयं को सिर्फ़ रामपुरिया कहते हैं तथा , धुरंधर 'नुक्कड़ बाज़ ' अविनाश गुरु के नाम !
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राज भाई...क्या जोर का लिखें हैं आप लालू पुराण...बहुतई ग़ज़ब का लेखन है आपका...लोट पोट भी होते रहे और तालियाँ भी पीटते रहे...लालू का जो है सो कमाल का विश्लेषण किये हैं आप...अगर इसे लालू स्वयं पढें तो कितने आनंदित हों ये ही सोच सोच हंसी से दोहरे हुए जा रहे हैं हम...
जवाब देंहटाएंनीरज
अरे नीरज भायी ,
जवाब देंहटाएंकाहे यार दुश्मनी निभाय रहे हो . हमने तो गुरु सिर्फ़ पोस्ट किया है .लिखा पढा तो सब उ ’तडकवा’ का है .वही पढने पढाने बिहार मे रहा कयी साल .जेपी आन्दोलन मे वहू शामिल था .बताता है कि लालू को तब्से जान्ता है.लालू इतना चालू कि जब जेपी दुइ चार लाठी खाते भये तब जाकर उन्को छाप लिया अऊर बताते फ़िरा कि सब लाठी वही झेल गया .पुराना ’नौटन्कीबाज़’.जेपी बिचारे सहलाते ही रह गये .लाज़ के मारे काहु से याहू ना कह पाये कि बुढापे मे लठियाये गये हजारों की सेना साथ होये के बाव्ज़ूदौ ! उन बिचारे के ऊप्पर फ़िर सन बयालिस रिपीट हुयि गवा . यी लालू डिरामा कर महीनों मरहम पट्टी कराता फ़िरा और बाबा शिवानन्द का बस्ता ढोवायी के इनाम मा शहीद डिक्लेयर होयि गवा.
घर मा खायि का जुगाड नहीं था तो जेल मे पिक्निक भी मनायि आया .अब बोलऊ मुकद्दर का सिकन्दर कहि ल्यो या चाहे खुदा मेहर्बान तो भैन्स पहलवान ! जेल से छूटा मज़ा मारि के तो सीधे पार्लियामेन्ट मे घुस गवा . ऊ दिन है कि परसों के दिन तक किस्मत की मराथेन दौड गवा .अब उचार ल्यो जो उचार्ना होयि जिस किसी को.जीत हार तेल लगावयि गयी . साली भैन्स बिना चारा पानी मरै कि जिये .सात पुश्तन की जुगाली का जुगाड फ़िट्ट है.ऊप्पर से फ़ालतू साला फ़ाला लोगन को कान्ग्रेस्स के कान्जीहाऊस मे छोड आवा है.झेलऊ उनका बाबा राहुल,बडे स्ट्रेटेजिस्ट बने फ़िर रहे हो.
अकल बडी कि भैन्स ( भैय्या फ़िर बताये दे रहे हैं ,भैन्स से मतलब ’बिहार’ ना समझ लेना ).और झूठ फ़ुरा ऊ ’तडकवा’ जाने हम तो जो ऊ बताया सो बताये दे रहे हैं .ओकरा डर का मारा यहु भी नाहिन कहि पा रहे हैं कि भैय्या किसी अऊर दर से जाके लिखा पढी करो काहे मुझे लपेटॆ मे ले रहे हो . वहु तो ससुरा ठाकुर ही ठहरा तौनौ यू पी का , बिहार का पडौसी .हमहिन पे पिल पडे तो बुढापा बेकार होइ जाये .
हम का जानैं भैस फ़ैन्स .यार पचीसन साल से हम भैन्स के मट्ठा को तरस गये भैन्स तो दूर की बात .अप्ने ही सर पर लैप टाप उठाये पेट पालते घूम रहे हैं लाखों बेवकूफ़ अमेरिकनों की तरह . हमरा भाग्य मे कहां दूध दही लस्सी फ़स्सी और कहां की भैन्स अऊर कहां के भैन्स टाप का सुख भैय्या .
तो यार अप्नी तिप्पनी तिपियाना सीधे ठा.छौन्क सिन्ह ’तडका ’ के नाम देव . सीधै सीधै कम से कम नाम से ना पुकारो लपेटे मा आयि जायेन्गे . आप ठहरे शहर वाले . आप को का पता कि ’ गयील भैन्स पानी मे का मतलब ? हम सीरीयस आदमी ठहरे शयिरी वाइरी का शगल ऊपर से तो नामयि लेना है तू उधरै आयि के दुलार जाना .अऊर यी तडकवा अभी बारी बारी से मुलायम ,माया ,ममता ,पास्वान ,पवार ,करात ,राहुल बाबा,आकरे ठाकरे,अगवा भगवा,तरह तरह के ’ नाडु ’ साडू ,गौडा फ़ौडा ,अकाली वकाली ना जाने किसकी किसकी जनम पतरी लिये घूम रहा है की छाप के मानेन्गे !एक दुयि मोदियऊ महाजन के चक्कर मे भी है.लगता है कि बनारस की उम्दा बूटी से चोला तर है और खुदयि ’तरन्ग टाप ’विचर रहा है .लिखा कम समझना जियादा.
और आजकल हम भी ’ताऊ’की तरह राम राम करने लगे हैं . उसमे अब कौनौं कम्यूनल मामला नहीं रह गया है .
तो बन्धू राम राम !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयहाँ तो बड़ा चोखा रंग बन पड़ा है जी। अब इसे तड़का महराज लिखें या राज जी स्वयं लिखें। हमें तो पढ़कर मजा आ गया। जिसने भी लिखा हो उसे शुक्रिया आज की सुबह को खुशगवार बनाने के लिए।
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखा है आपने। भाई वाह। तथ्य और प्रवाह गजब का है।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
तड़्का लगाते रहिये.
जवाब देंहटाएंअभी खेल चल ही रहा है .
इस खेल में कोई दाँव आखिरी नहीं है.
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बहुत ही शानदार और सटीक विशलेषण किये हो राज जी। आपने बढ़िया व्यंग किया और बचकर साफ निकलना भी खूब आता है, और लालू तो लालू है, चल गया तो लालू नही तो चालू।
जवाब देंहटाएं" आनन्दम.. घोर आनन्दम । " पण हेडर का साइज़ 980 x 120 pixel से ज्यादा नहीं रखने का साहेब ।
जवाब देंहटाएंअक्खा ब्लाग इधर उधर कूँ भाग रैली है !
माइन्ड नेंईं करने का साहेब,
बाई द वे बोला, आपको !
बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंबहुत ही जोरदार तड़का लगाया है सर जी .बधाई हो .
जवाब देंहटाएंसुंदर, आनंददायक, और पीड़ावृद्धिकारक भी।
जवाब देंहटाएंदेर से आप की पोस्ट पढ पायी हूं,लेख पढ कर सच में हंसी आ गयी..करारा व्यंग्य कसा है...
जवाब देंहटाएं’बाजी अगर सही हो तो ' जोकर ' को भी क्रेडिट मिल सकता है । मैनेजमेंट चाहे जिसका हो ।”
इस सारी दाल का यही तड्का सही लगा..बहुत खूब लिखा है..लालू भी पढेंगे तो हंसे बिना नही रह पायेंगे.
please word verification hataa lijeeye Sir..
जवाब देंहटाएंek sujhaav--blog ke header ki picture ka size theek kar lijeeye..picture load hone mein time lagta hai aur blog post padhi nahin jaati..us picture ka side bar mein bhi laga saktey hain..ya resize kar ke header mein fit ho sake us setting mein rakhen..blog proper display nahin ho pata hai.
जवाब देंहटाएंthanks,regards
अजी, देर से पहुँचे किन्तु आनन्द पूरा लिए आपके जबरदत लेखन का. क्या गज़ब का लिखते हैं, माशाअल्लाह!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही मारक व्यंग्य.जय हो सर आपकी.
असली लालू चालीसा :)
जवाब देंहटाएंडा. अमर भायी और अल्पना जी .आप्के सुझाव सर आन्खों पर . लेकिन इमानदारी से कबूल करता हून कि आपुन सिर्फ़ पढे लिखे हैं . सो भी नागरी मे छापना सीखने मे कयी महीने लग गये . ( बतर्ज़ ’ नुक्कड नरेश ’ तब तक जो चन्द यदा कदा लोग आहत हो रहे हैं मेरे लेखन और टिपियाने से, सालों बच रहे .)
जवाब देंहटाएंलेकिन अभी भी दूकान की सजावट वगैरह नहीन समझ पाया .एक चोकरे ने मेरे फ़ोटू कलेक्शन से एक फ़ोटू खैन्च दूकान का सायिन बोर्ड टांग दिया . अब जो पाथकोन का दर्द वही मेरा . बोर्ड बडा और लिखा पढा सब चोत्टा .यी बोरड हटाने या छोटा बडा करना भी नहीं जानता . डरता हून कहीन कुछ गडबड होय गयी तो पूरी दूकान ही ना गायब होइ जाये . अब बुड्ढा तोता अपने आपयि राम राम भी नहीं करना सीख पाये रहा है .अब इन्दिया पहुन्च ही पहले पकडता हून उसी छोकरे को . दुयि हफ़्ता की मोहलत दयि दो , और थोडी माफ़ियु भी .
रतलामी सेव और उडन खटोला महराज़ भी टिपियाय गये . सब लालू जी की क्रिपा . को नहिं जानत है जग मे प्रभु लालू यादव नाओं तिहारो !
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! आपका सुझाव मुझे बहुत अच्छा लगा पर बात ये है कि मैं ख़ुद पेंटिंग करती हूँ इसलिए शायरी के साथ पेंटिंग देती हूँ ताकि और अच्छा लगे! पर उसमे मैं स्रोत ,कलाकार , देश ,समय काल , किस कला मूल स्कूल का प्रतिनिधित्व वगैरह का परिचय कैसे दूँ? मैंने बहुत सोचा पर समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे पेश करूँ! राज जी अगर आप थोड़ा सा उदाहरण देकर बताएँगे तो काफी अच्छा रहेगा! आपकी ख़ूबसूरत पंक्तियों ने तो दिल को छू लिया! आप जैसे महान लेखक से कुछ सिखने को मिले तो ये मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है आपने! इतना अच्छा लगा की कहने के लिए अल्फाज़ नहीं है!
सभी सज्जनो देवियो एक खुलाशा . अभी तक मैं डा. अमर जी को शुद्ध निठल्ला समझे बैठा था . पर वो बहुत काम के ही नहीं फ़ुर्तीले भी हैं.
जवाब देंहटाएंजो हेडर मे नया साइन बोर्ड लगा है , वह उन्ही की सस्नेह देन है .
धन्यवाद अमर जी .
और कभी भी किसी भी निठल्ले को (मेरे सहित) बेकार का ना समझा जाये ( सिर्फ़ लेखन को छोड कर )
भाई राज सिंह जी, बहुत देर से पहुंचा हूं..आपकी पोस्ट का भरपूर आनन्द लिया. पोस्ट आपने हमको समर्पित किया, इससे गदगदायमान हूं. कही मैं भी तो नेता नही बन गया हूं?:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
नहीं ’ताऊ’ हम आप को नेता उस तरह वाला नहीं समझते . वैसे हर ’ताऊ’ भतीजे के पैदा होने के साथ ही नेता बन जाता है . भतीजों का . तो नेता तो आप ने खुद ही अपने आप को डिकलेयर कर दिया है .तो मेरे हाथ लगाने की ( या किसी ससुरे की ) क्या जरूरत .
जवाब देंहटाएंरही बात समर्पण करने की तो आप्को समर्पित किया , कि चुका तो रहे हैं हम उधार , लेकिन इशताइल समर्पण की . मतलब आप को पढ पढ इतने दिन आनन्दित होते रहे तो कुछ ’ द़क्छिणा ’ तो बनती है न .चुकाना फ़र्ज़ भी , आनन्द भी ( कि पैसा भी कौन सा लग रहा है , यहां शाल क्या नारियल भी नहीं चढाना है ,ना कौनवु फ़ूल माल बस श्रद्धासुमन से काम चल जाना है )
हम ने आप के ढन्ग से गुद्गुदाया , आप गदगदाये , हम धन्य !
राम राम ! :)
Raj ji ,Ab better ho gaya hai yah header.
जवाब देंहटाएंshukriya sujhaav par dhyan dene hetu.
ek jharkhandi(pehle bihari) ka salaam aapke is lekh ko...laloo ke jeevani kabhi likhi bhi gayi(!!) to isse behtar nahi ho sakti...bahut kamaal ka likha hai...sachee bahut achha :)
जवाब देंहटाएंaapka vichaar sahi hua...laloo jee ki durgati ho gayee hai...na koi bhains hai na koi rel...aise rel ki sawaari laloo ji ne bhains ke mukaable zyada saamjhdaari aur imaandaari se ki thi...par kya fark padta hai...log to joker ko pehchaan gaye hai !!
www.pyasasajal.blogspot.com
राज जी देरी के लिए माफ़ी चाहती हूँ!
जवाब देंहटाएंबहुत ही दमदार, मज़ेदार तड़का है ये!
सुन्दर लेखन है सही में, अब और अल्फाज़ नहीं हैं!
मैं दो दिन पहले ही पढ़ चुकी थी लेकिन टिप्पणी छोड़ने का समय नहीं मिला!
ji aapne utsuktavash ek sawaal kiya tha...main Jharkhand me Ranchi ka nivaasi hoon...
जवाब देंहटाएंvaise blog pe aate jaate rahiyega..aap bado ka ashiraad paana bahut achha lagta hai :)
kya jordar tadka hai. svad nirala,kya gajab kar dala. narayan narayan
जवाब देंहटाएंDhardhar.Yun hi likhte rhiye.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut prabhav purn lekh hai...
जवाब देंहटाएंअरे इस तडके मै हम बंचित ही रह जाते, राज जी आप ने तो बहुत सारे अच्छे अच्छॆ मसाले डाल कर ओर बहुत अच्छी तरह से यह तडका लगाया, थोडा ज्यादा था , लेकिन इतना मजा आया कि पुरा पढे बिना रहा नही गया,
जवाब देंहटाएंआप ने सारी बाते खोल कर लिखी है, ओर यह सच भी है,पढते रहे ओर हंसते भी रहे, आज पता चल गया कि अकल बडी या भेंस, ओर अगर लालू भी इसे पढे तो जरुर आप के चरण पकड ले,भाई अब तो रोजाना आना पडेगा आप के ब्लांग पर , अभी तो पुराने लेखो पर जा रहा हुं, ओर आप का यह लिंक अपने दोस्तो को भी भेज रहा हुं.
धन्यवाद
लालू को धो डाला -इसी बात पर आपकी गोदौलिया की लस्सी ड्यू हो गयी है !
जवाब देंहटाएंअरे, हम अब तक ये मानते रहे कि आप का कोई ब्लोग नही है. ऐसा क्यॊंकर हुआ ये तो नही जानते, मगर अब देर आयद , दुरुस्त आयद. खूब गुज़रेगी.
जवाब देंहटाएंलालू पर जो भी लिखे कम है.
घोर आनद दायक बहुत खूब
जवाब देंहटाएंaapne kuch likha nahin Raj ji!!
जवाब देंहटाएंsabse pahale aapka shukrita jo mere blog pe padhare .main bayan nahi kar sakti lekin kai dino se haardik ichchha thi ki aap blog pe aaye .main aap ke blog pe hamesha aati rahi magar zahir nahi ki .aur rachana to mast ,zabardast ,shandaar saath hi mazedar bhi .baaki baate logo ne kah di use kya dohrau .
जवाब देंहटाएंमुला पहले ई बतावा , उपरा जौन लिखल बा , ओहमा दलिया कितनी बाटे ,और तडकवा कितना दलिया से तडकवा सैगर लौकत बाटे |
जवाब देंहटाएं@anyonasti,
जवाब देंहटाएंchama pahile ki bahare ahee nagaree ma likhai ka suvidha naheen baa .
AB DAAL SAIGAR BAA KI TADAKAA YI AAP CHEEKH KE BATAYIN DEHEN . HAM TA KAHAB....
JALEE HUYEE DAAL KA KHUD DHUAN HOON,
MAHAK KO ' TADAKAA ' LAGAA RAHA HOON.
bakee jaisee panchan kee rai .....bagharal ba aapyi sab khatir :)
nice
जवाब देंहटाएंRaj bhai,bahut din beete aapki paati nahi aai.ka baat hai?kuch to batawain ka chahi ,warna ...
जवाब देंहटाएंaapai ka bhoopendra
अरे भाई ! रहते हैं न्यू योर्क में खबर पटना की और लालू की. लालू तो एक प्रतीक हैं पर हमारे अधिकांश नेता ऐसे ही हैं. गंभीर शोध का विषय यह है कि ये जनता (हमें) रिझाते कैसे हैं? कोई कहता है, जाति ! पर उसी जाति के उनसे बेहतर नेता एक वोट नहीं पाते. कोई कहता है, धन ! पर भारत का सबसे धनी उम्मीदवार जमानत गंवा देता है. कोई कहता है, उनका, बोलना! पर उनसे अच्छे अच्छे वक्ता केवल टीवी शो तक सिमट जाते हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी ये रचना कल चर्चा में चर्चामंच पे डाली जा रही है
जवाब देंहटाएंसादर
कमल