सोमवार, 9 मार्च 2009

इस बार की तो .........' हो'...'.ली.'

साल का यह वक़्त अच्छा लगता है ! अक्सर लोग प्रेम मय हो जाते हैं । वसंत ऋतू वगैरह तथा अंग्रजी वाला वैलेंटाइन और होली वसंत महोत्सव वगैरह सभी एक साथ परेड करते हैं। जिसमे चाहो शामिल हो जाओ । कुछ लोगों ने मोहब्बत करना भी मुश्किल बना दिया है । उनका ख्याल है की उन्हीं का प्रेम मार्ग,दिन, काल,कैलेंडर ,पंचांग, पत्रा वगैरह ही 'संस्कृति' है , बाकि सब प्यार ,इश्क,प्रेम व्यभिचार की श्रेणी में आते हैं .उन्हीं की परेड प्रेम के सच्चे मार्ग तक ले जाती है । जनता कहीं सांस्कृतिक गुमराही की तरफ़ न निकल ले, इसलिए वे अपने पंचांग और मुहूर्त को ही 'काल दर्शन 'से व्याखित कर दूसरी परेडों को दौड़ा भी रहे हैं पीट भी रहे हैं ।सुधार रहे हैं । अपसंस्कृति सिर्फ़ उन्हीं के हरम में पले और उन्हीं की रखैल बनी रहे । सड़कों पर तो सीता सावित्रियों वाला माहौल ही बना रहना चाहिए ।

लेकिन हमें क्या काम दुनिया से हमें तो इश्क प्यारा है ! हमें इश्क प्रेम के लिए कभी कैलेंडर की ज़रूरत नहीं पडी। अपने आप से ही होता रहा । तकनीकी भाषा में कहें तो सदा 'ऑटो' पर ही 'सेट ' रहे। स्वचालित ही नहीं स्वाभावित ! मिजाज-ऐ-कैश यारों बचपने से aashikana था । तो हमें मुहूर्त की जरूरत नहीं पडी कभी ,कम से कम शुरू करने में । जब 'नज़र' आयी मोहब्बत साथ हो लिए ! हाँ बाद में चाँद, चांदनी,वैलेंटाइन डे ,वसंत डे ,२६ जनुवरी ,१५ अगस्त, और बिला नागा २, अक्टूबर ,और अक्सर काम से भागने के हिसाब से अपना कैलेंडर बनाते रहे।' सेक्स पीर' महोदय ने कहीं लिख्खाभी है "नाम में क्या रख्खा क्या है ?" मैं तो कहता हूँ भैय्ये मेरी और भी जोड़ ले ! "तारीखों में क्या रक्खा है ?"

इस बार मेरी किस्मत अच्छी रही । वसंत में भारत में था ,और भारत मुझमे । थोड़ा बतला दूँ । ऐसा नहीं है की वसंत और देशों में ही नही आता जाता, आता जाता रहता है।और वह उनका होता है । उनका कैलेंडर । दुनिया chhotee हो रही है । निकल लीजिये, मना आइये , थोड़ा डूब कर..... । स्पंदित हैं आनंदित भी हो जायेंगे............ । उनकी भी आबादी बढ़ रही है । कहीं न कहीं उनके काम देव भी तीर , ये तो वो जाने , क्योंकि कुछ संस्कृतियों का विश्वास है की सो काल्ड कामदेव डंडा लेके आते हैं ...................और हम सभी जानते हैं डंडा तीर से भी ज्यादा खतरनाक हथियार है। तीर तो सिर्फ़ घायल करता है। डंडा मार देता है ,दबा देता है। और किसी बाहुबली (या खुली बाँहों )का हथियार बन जाए तो ?

तो ? तो क्या लालू !!!!!! । लालू यादव !
इसमे सीरियस होने की कोई जरूरत नहीं । कैलंडर और कैलेंडर वाले ही काल वाह्य होते रहते हैं ।लेकिन जब तक जिसकी चलती है ,चलाता है । चलाना तो जरूर चाहता है ............

यहेई समस्या है होली में ..........तरंगित होने की बाद मूल प्रयोजन से विसर्जन होता ही रहता है । मैं भी उसी पे आता हूँ फिरसे ...............
तो इस साल मैं भारत में था और वसंत मेरे भीतर,aur bharat bhee. भले कह दिया की सभी मुल्कों में वसंत होता है आता जाता रहता है पर भारत का वसंत मेरा बड़ा ही अपना होता है । हमारे जैसे बड़े साre 'उड़न छु ' महसूस करते हैं ।

ट्रांस्लितेरेशन की दिक्कतों से बहुत मुस्किल आ रही है । तरंग नाश हो रहा है । तदा रुक कर ।

फ़िर भी कुछ छुटभैयों ने (अपमान जनक नहीं, मेरा मतलब छोटे भाइयों से है ,वो भी उम्र के हिसाब से ) मेरी लिपि को ही व्यंग का पत्रा बना दिया है । भैये भाषा और लिपि का चोली दमन होता है ,मैं भी तीवरता से चाहता हूँ की नागरी ही एक लिपि रहे । इसलिए नहीं की वो मेरी अपनी है , बल्कि वह ज्यादा वैज्ञानिक है ,खास कर उसकी अपनी ही भाषा के लिए ही नहीं ..........सभी भाषाओं के लिए । और इसमे कोई भी भावनात्मक आग्रह नहीं है । यह वैज्ञानिक आग्रह है !..................
तो यार लिपि को भाषा के ऊपर भी न चढाओ ! खतरे हैं । उस भाषा के लिए ही जिसकी लड़ाई हम आप लड़ रहे हैं । हम आप अपने बच्चों को अंग्रजी न सही रोमन तो सिखा ही दे रहे हैं । तो बाप न सही ,बड़े भाई का वक़्त तो दो । .जोर से कह रहा हूँ लिपि को मुद्दा बनोगे banaoge तो भाषा लुप्त तो नहीं, असहाय पड़ जायेगी। ज्यादा नहीं कहूँगा । यह बहुत बड़े विमर्श का विषई है। भाई मेरे तुम्हारे हमारे अलावा भी कुछ नहीं, बड़े कुछ विद्वान् वीरों ,नागरी प्रेमियों की सेना जरूरी है ।

पुनश्च : भाई मेरे इस बार तो रोमन कम है । ताली न बजा सको तो मार्क शीत ही दुरुस्त कर दो ।

बुरा भी माँअनो ........तो क्या तो क्या ? होली है ! और मेरी तो आलरेडी ' हो '...'ली ' है ! अपनी होली जलाओ ..............!
हम तो हर दिन होली , रात दिवाली .............प्रेम स्नेह सम्मान मोहब्बत की गुजरते हैं !

तो मस्त हैं हम !
सब............................ 'हो'...'lee ' hai !

---------------------------------------------------------------------------------------------------प्रतिज्ञा बद्ध की यह पोस्ट chhutakee भौजाई 'बवालिन' की शान में होगी । वही है !

5 टिप्‍पणियां:

  1. hamne chapa 'TaDKaa', vo 'TADKAA' HOTA RAHA !ROMAN HEE HOTA RAHA............ . . KOYEE SCHOOL BATLAO , YA FIR SCHOOL HO JAO!

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  2. हा हा हा राज साहब बड़ी मज़ेदार पोस्ट। यहाँ तो हमारी बवालिन भी पाई जाती हैं वाह वाह! उनकी तरफ़ से भी आपको सादर नमन। होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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  3. मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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  4. raaj ji ,laazwaab rachana padhate waqt aanand ki anubhuti hui .लेकिन हमें क्या काम दुनिया से हमें तो इश्क प्यारा है ! हमें इश्क प्रेम के लिए कभी कैलेंडर की ज़रूरत नहीं और हम सभी जानते हैं डंडा तीर से भी ज्यादा खतरनाक हथियार है। तीर तो सिर्फ़ घायल करता है। डंडा मार देता है ,दबा देता है। और किसी बाहुबली (या खुली बाँहों )का हथियार बन जाए तो ?पडी।

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